बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 इतिहास बीए सेमेस्टर-3 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 इतिहास
प्रश्न- वेलेजली तथा फ्रांसीसियों के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
उत्तर -
वेलेजली तथा फ्रांसीसियों के बीच सम्बन्ध
(Relation between Wallesly and French)
वेलेजली 1797 में भारत आया जो कि अंग्रेजी इतिहास का सबसे अंधकारमय समय था। फ्रांस के विरुद्ध यूरोपिय शक्तियों का बना हुआ मोर्चा छिन्न-भिन्न हो चुका था। नेपोलियन मिस्र तथा सीरिया पर विजय प्राप्त कर चुका था और भारत पर आक्रमण करने की सघन तैयारी बना रहा था। 1798 में उसे आशा थी कि वह 10,000,000 सेना भारत पर आक्रमण करने के लिए फरात नदी पर एकत्रित कर देगा। वह सिकन्दर की ही तरह एलेक्जैन्ड्रिया से भारत पर आक्रमण करने के बारे में सोच रहा था। 1801 में भी नेपोलियन ने रूस के जार पॉल से सन्धि करके भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई जिसके अनुसार जनरल मस्सेना 35,000 फ्रांसीसी सैनिक लेकर उल्म ड्रन्यूब तथा काला सागर के मार्ग से अस्तखान पहुंचेंगे। वहाँ 35,000 रूस सेना उससे मिल जायेगी तथा वेहरात फर्राह तथा कन्धार के मार्ग पर आक्रमण करेंगे। उस समय तक अंग्रेजों को स्थल पर नेपोलियन की अदम्य शक्ति का आभास मिल चुका था। यदि नेपोलियन की यह योजना सफल हो जाती तो अंग्रेजी व्यापार, जो इतना लाभप्रद था, समाप्त हो जाता।
सम्भवतः यह कहा जा सकता है कि नेपोलियन की यह योजना कल्पना मात्र थी। परन्तु समकालीन लोग ऐसा नहीं सोचते थे। कोर्ट आफ डाइरेक्टर्स की गुप्त समिति ने 18 जून, 1798 के पत्र में वेलेजली को लिखा था, "हमारे पूर्वी साम्राज्य से फ्रांसीसियों को बहुत ईर्ष्या है। उनकी पुरानी सरकार आशा अन्तरीय के स्थान पर किसी अन्य छोटे मार्ग से भारत पहुंचना चाहती थी और निःसन्देह आधुनिक सरकार भी ऐसा करने का भरसक प्रयत्न करेगी कि यदि वे हमारे साम्राज्य को नष्ट-भ्रष्ट न भी कर सके तो कम से कम उसे छोटा अवश्य कर दें। इसी प्रकार 1800 में जनरल स्टूअर्ट ने हेनरी डंडास को लिखा था कि यह योजना सफल हो सकती है और सम्भवतः सफल हो भी जाती यदि तुर्क लोग फ्रांस के मित्र बन जाते अथवा वे लोग काहिरा पहुंचते ही तुरन्त इस ओर बढ़ आते। यह भी सुझाव था कि फ्रांसीसी अपने उपनिवेश मॉरिशस का प्रयोग भारत के पश्चिमी तट पर आक्रमण करने के लिए करें क्योंकि अंग्रेज नौसेना सभी बन्दरगाहों की सुरक्षा नहीं कर सकती थी। इसके अतिरिक्त फ्रांसीसी नौसेना संभवतः निश्चित प्रयत्न द्वारा, जैसा उन्होंने अमरीकन युद्ध में किया था, सामयिक रूप में सैनिक विशिष्टता भी प्राप्त कर सके।
वेलेजली कोई भी संकट मोल नहीं लेना चाहता था। उसे इस बात का ज्ञान था मैसूर का टीपू सुल्तान नेपोलियन से पत्राचार के माध्यम से संपर्क कर रहा था व अंग्रेजों को भारत से निकालने की योजना बना रहा था। जिस दिन वैल्जली भारत आया उस दिन टीपू के दूत मॉरिशस से एक फ्रांसीसी पोत तथा कुछ सैनिकों को लेकर तथा फ्रांसीसी सहायता के वचन के साथ वापस मंगलोर पहुंचे थे। टीपू ने अपने आपको 'नागरिक टीपू की संज्ञा दी तथा स्वतंत्रता की पताका श्रीरंगापट्टम में फहरा दी। इसके अतिरिक्त उसने फ्रांसीसियों से आक्रमण तथा रक्षात्मक संधि कर ली थी। वह कंपनी के विरुद्ध युद्ध की एक विस्तृत योजना बना रहा था। 1795 में खारड़ा के स्थान पर मराठों के हाथों निजाम की पराजय के पश्चात् अंग्रेज उसका साथ छोड़ गये थे तथा उसने फ्रांसीसियों से आक्रामक तथा रक्षात्मक संधि कर ली थी। वह कंपनी के विरुद्ध युद्ध की एक विस्तृत योजना बना रहा था। तथा उसने फ्रांसीसी कमाण्डर मस्यु रेमां को अपने यहाँ नियुक्त कर लिया था तथा निजाम ने उसकी सहायता से 14,000 सैनिक तैयार कर लिये थे। इसी प्रकार मराठा सरदार महराजी सिन्धिया ने भी काउण्ट डब्रेन तथा कालान्तर में मस्यु वैरों की सहायता से 8,000 पैदल तथा 8,000 घुड़सवारों की एक सेना तैयार कर ली तथा गंगा जमुना दोआब लेकर इस नई सेना के भरण-पोषण के लिए पृथक रख दिये थे। चूंकि सिन्धियां इन पदाधिकारियों पर अपना पूर्ण नियंत्रण नहीं कर सकता था अतएव यह समस्त सेना नेपोलियन के काम आ सकती थी। दिल्ली आगरा तो इनके अधीन था ही अतएव ये लोग बंगाल तथा बिहार के विरुद्ध भी अभियान कर सकते थे। वैल्जली ने मस्यु पैरों के 'स्वतंत्र राज्य' का उल्लेख किया है। वह भारत के बीचों बीच फ्रांसीसी उपनिवेश को सन नहीं कर सकता था। उसे रणजीत सिंह का फ्रांसीसी कमाण्डरों का प्रयोग करना भी अखरता था। दूसरी ओर काबुल का जमान शाह भी भारत पर आक्रमण भी योजना बना रखा था।
अतएव वेलेजली ने फ्रांसीसी भय को दूर करने के लिए निम्नलिखित प्रयत्न किये -
(1) वेलेजली ने यह भी अनुभव किया कि भारत को नेपोलियन के प्रभाव से बचाने का सबसे उत्तम उपाय यह था कि वह स्वयं भारतीय राजाओं के विवादों में मध्यस्थ बने। इसी आशय से जार्ज वालों ने 1803 में नीति सम्बन्धी पत्र में लिखा था कि 'इनको हराने का एकमात्र उपाय यह है कि भारत में कोई राज्य ऐसा न रहे जो हम पर निर्भर न हो अथवा जिसका राजनैतिक आचरण हमारे अधीन न हो। अर्थात् फ्रांस के सभी वास्तविक तथा संभावित मित्रों का दमन करने की योजना थी तथा इसके लिए उसने भारतीय राज्यों को सहायक सन्धि स्वीकार करने पर बाध्य किया। जिससे वे निरस्त हो गये तथा उन्होंने फ्रांसीसियों को अपने राज्य से निकाल दिया। इससे अंग्रेज बिना धन व्यय किये बहुत सी सेना रखने में सफल हो गये। सितंबर 1798 में वेलेजली ने निजाम को युद्ध अथवा सहायक सन्धि में से एक स्वीकार करने को कहा। निर्बल निजाम ने सहायक सन्धि स्वीकार कर ली। उसे फ्रांसीसी सैनिकों तथा अफसरों को युद्ध बन्दी बनाकर कलकत्ते भेजना पड़ा। कालान्तर में वे यूरोप भेज दिये गये। निजाम के लिए अंग्रेजी अफसरों के अधीन 'बटालियनों की एक सेना हैदराबाद में रखी गई, जिसका समस्त व्यय उसे देना था। इस प्रकार हैदराबाद में फ्रांसीसी प्रभाव समाप्त हो गया। उसके पश्चात् उसने टीपू की ओर ध्यान दिया जो उस समय फ्रांसीसियों से मिलकर भारत से अंग्रेजों को निकालने की योजना बना रहा था। वेलेजली ने अनुभव किया कि लाल सागर की ओर से फ्रांसीसी आक्रमण 1799 के मध्य से पूर्व संभव नहीं अतएव उसने उससे पूर्व ही टीपू से निपटने की सोची। टीपू के सहायक सन्धि अस्वीकार करने पर फरवरी 1799 में उसने उससे पूर्व ही टीपू से निबटने की सोची। टीपू के सहायक संधि अस्वीकार करने पर फरवरी 1799 में टीपू से युद्ध आरम्भ हो गया तथा मई 1799 तक यह युद्ध समाप्त हो गया। मैसूर की सीमाएं कम कर दी गई तथा सत्ता मैसूर के प्राचीन हिन्दू राजवंश को दे दी गई। एक शत्रु समाप्त हो गया तथा दक्षिणी प्रायद्वीप पर अंग्रेजी प्रभुत्व स्थापित हो गया। हाउस ऑफ कामन्स में वेल्जली के इस कार्य की बहुत सराहना हुई।
वेलेजली ने फिर उत्तर की ओर ध्यान दिया। अवध की अवस्था बहुत बिगड़ गई थी। फ्रांसीसी आक्रमण के भय को दूर करने के लिए अवध को सहायक सन्धि स्वीकार करने पर बाध्य किया गया तथा उसे रुहेलखंड तथा दोआब के उत्तरी जिले में सहायक सेना के व्यय के लिए देने पड़े। फिर मराठों की ओर ध्यान दिया गया। ये लोग अभी तक पूर्णतया स्वतंत्र थे। सिन्धियां की सेना के फ्रांसीसी अधिकारी अंग्रेजों के लिए भय का कारण बन सकते थे। टीपू की पराजय तथा मृत्यु से पेशवा अति दुःखी था। वेलेजली द्वारा सहायक सन्धि का प्रस्ताव पेशवा ने अस्वीकार कर दिया। परन्तु मराठों के आपसी झगड़ों के कारण पेशवा कंपनी के जाल में फंस गया तथा दिसंबर 1802 में उसने सहायक सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिये। पूना सहायक सेना तैनात कर दी गई। सिन्धिया तथा भोंसले ने इसे अत्यन्त अपमानजनक माना तथा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध आरम्भ कर दिया जिसमें वे दोनों पराजित हो गये। दोनों को सहायक सन्धि स्वीकार करनी पड़ी तथा अपना महत्वपूर्ण प्रदेश अंग्रेजों को देना पड़ा। इस प्रकार इस समस्त प्रदेश से फ्रांसीसी समाप्त हो गये।
(2) इसके पश्चात् वेलेजली ने समस्त भारत की रक्षा की योजना बनायी। गोआ की फ्रांसीसियों के हाथों से रक्षा करने के उद्देश्य से उसने पुर्तगालियों की अनुमति से गोआ में अंग्रेजी सेना तैनात कर दी। 1801 में इंग्लैंड तथा डेनमार्क विपरीत धड़ों में थे अतएव वेलेजली ने बंगाल में डेनमार्क के अड्डों - ट्रांकूवार तथा सीरमपुर को जीत लिया। कलकत्ते के समीप होने के कारण सीरमपुर वैल्जली को बहुत चुभता था। यह जैकोबिन लोगों, कानून की पकड़ में न आने वाले भगोड़ों तथा ऋषियों के लिए उचित आश्रय था।
(3) वैल्जली ने फ्रांसीसी नाविक अड्डे मॉरिशस पर आक्रमण की योजना बनाई परन्तु एडमिरल रेनियर ने लंदन से स्पष्ट आज्ञा के बिना ऐसा करने से मनाही कर दी। इसी बीच उसने डच प्रदेश बटाविया तथा केप कॉलोनी पर भी आक्रमण की अनुमति मांगी क्योंकि डच उन दिनों फ्रांस के मित्र थे।
(4) 1800 में ही वेलेजली ने एक भारतीय सैनिक टुकड़ी को मिश्र में नेपोलियन के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजा। परन्तु पहुंचने पर पता लगा कि फ्रांसीसी इससे पूर्व ही हथियार डाल चुके थे। 1802 में यह सेना वापिस आ गई।
(5) 1802 में हुई एमीन्ज की सन्धि से पाण्डचेरी नगर पुनः फ्रांसीसियों को मिल गया। इस अवसर का उपयोग नेपोलियन सिंधिया के फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा मुगल सम्राट से सन्धिवार्ता के लिए भी किया। इसी बीच नेपोलियन से पुनः युद्ध छिड़ गया तथा वैल्जली नेलार्ड लेक को भेज कर दिल्ली तथा आगरे पर अधिकार कर लिया तथा शाह आलम को पर्याप्त पेन्शन दे दी।
(6) वेलेजली की योजना यह थी कि तटीय प्रदेश, गुजरात, मालावार तथा कटक को घेरकर भारतीय राज्यों को फ्रांसीसी सहायता न पहुंचने दे। इसी कारण टीपू से सन्धि में एक शर्त मालावार का आत्मसमर्पण था। इसी प्रकार मराठा युद्ध के समय उसने भड़ौच के बन्दरगाह तथा चम्पानेर तथा पवनगाढ़ दुर्गों को विजय कर लिया था। भड़ौंच के सामरिक महत्व को वैल्जली भली-भांति समझता था। इसी प्रकार कटक को जीत कर उसने बंगाल तथा मद्रास के प्रदेशों को मिला दिया तथा नागपुर के राजा और फ्रांसीसियों के बीच खाई उत्पन्न कर दी।
(7) 1799 में उसने महदी अली खां नामक दूत ईरान के शाह के दरबार में भेजा। नवंबर 1800 मैं एक अन्य दूत जॉन मैल्कम बहुत से बहुमूल्य उपहार लेकर तेहरान पहुंचा। इनके फलस्वरूप शाह से एक सन्धि हुई जिसमें शाह ने फ्रांसीसियों को अपने देश में आने की अनुमति न देने का वचन दिया।
(8) उसने बंगाल में रहने वाले अंग्रेजों से युद्धकोष के लिए धन मांगा और 1,20,785 से अधिक धन केवल बंगाल से ही एकत्रित करके इंग्लैंड भेजा गया। अनेक अंग्रेजों ने नेपोलियन के विरुद्ध युद्ध में भाग लेने का भी प्रस्ताव किया।
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